सुप्रीम कोर्ट ने कहा : धार्मिक समुदाय शिक्षा संस्थान चला सकते हैं
गाजियाबाद : अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (ए.एम.यू.) को अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान का दर्जा दिए जाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुना दिया है। 7 जजों की संवैधानिक बेंच ने शुक्रवार (8 नवंबर 2024) को 4:3 के बहुमत से 57 साल पुराना फैसला पलट दिया। बेंच ने कहा कि ए.एम.यू. संविधान के आर्टिकल 30 के तहत अल्पसंख्यक दर्जे की हकदार है।
सुप्रीम कोर्ट ने ही 1967 के फैसले में कहा था कि ए.एम.यू. एक सेंट्रल यूनिवर्सिटी है। लिहाजा इसे अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जा सकता।
3 जजों की रेगुलर बेंच लेगी फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ए.एम.यू.के अल्पसंख्यक दर्जे के मुद्दे पर अब 3 जजों की रेगुलर बेंच द्वारा निर्णय लिया जाएगा। बेंच इस फैक्ट की जांच करेगी कि क्या ए.एम.यू. को अल्पसंख्यकों ने स्थापित किया था। अजीज बाशा केस में कोर्ट ने कहा था कि ए.एम.यू. सेंट्रल यूनिवर्सिटी है। इसकी स्थापना ना तो अल्पसंख्यकों ने की थी और ना ही उसका संचालन किया था। अब सुप्रीम कोर्ट के ही 3 जजों की बेंच इस पर फैसला सुनाएगी।
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के बारे में जानें
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की स्थापना 1875 में सर सैयद अहमद खान द्वारा ‘अलीगढ़ मुस्लिम कॉलेज’ के रूप में की गई थी।
इसका उद्देश्य मुसलमानों के शैक्षिक उत्थान के लिए एक केंद्र स्थापित करना था।
1920 में ब्रिटिश सरकार की मदद से कमेटी ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी एक्ट बनाकर इस यूनिवर्सिटी की स्थापना की।
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी बनाए जाने के बाद पहले से बनी सभी कमेटी को भंग कर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के नाम से एक नई कमेटी बनी। इसी कमेटी को सभी अधिकार और संपत्ति सौंपी गई।
क्या है विवाद
एएमयू अधिनियम 1920 में साल 1951 और 1965 में हुए संशोधनों को मिलीं कानूनी चुनौतियों ने इस विवाद को जन्म दिया। सुप्रीम कोर्ट ने 1967 में कहा कि, एएमयू एक सेंट्रल यूनिवर्सिटी है। इसे अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के 13 साल बाद 1981 में केंद्र सरकार ने ्ररू एक्ट के सेक्शन 2(1) में बदलाव किया गया। इस यूनिवर्सिटी को मुस्लिमों का पसंदीदा संस्थान बताकर इसके अल्पसंख्यक दर्जे को बहाल किया गया।
साथ ही कानून की धारा 5(2)(ष्) में जोड़ा गया कि ये यूनिवर्सिटी भारत के अल्पसंख्यक मुस्लिमों को शैक्षिक और सांस्कृतिक रूप से आगे बढ़ा रहा है।
2005 में एएमयू ने खुद को अल्पसंख्यक संस्थान माना और मेडिकल के क्कत्र कोर्सेस की 50त्न सीटें मुस्लिम छात्रों के लिए आरक्षित कर दीं। इसके खिलाफ हिंदू छात्र इलाहाबाद हाईकोर्ट गए।
छात्रों की दो मांगे थीं। पहली- अल्पसंख्यक दर्जे के तहत यूनिवर्सिटी मुस्लिम छात्रों को 75त्न आरक्षण देना बंद करे। दूसरी- मुस्लिम छात्रों के लिए एडमिशन टेस्ट यूनिवर्सिटी लेती थी, जबकि 25त्न सामान्य वर्ग की सीटों के लिए एडमिशन टेस्ट ्रढ्ढढ्ढरूस् करवाती थी।
2006 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 1981 में केंद्र सरकार के अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को लेकर किए गए संविधान संशोधन को अमान्य करार दिया।
हाईकोर्ट के फैसले के बाद से अभी तक अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के पास अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा नहीं है।
हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ ्ररू सुप्रीम कोर्ट गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने 2019 में इस मामले को 7 जजों की संवैधानिक बेंच को ट्रांसफर कर दिया था।